कभी तो खोलिए नापतोल का ऑफिस! दर्जन की चीजें वजन से बिकें—तो जवाबदेह कौन?

 भूपेंद्रसिंह | शाजापुर





शाजापुर का नापतोल विभाग इन दिनों अपनी जिम्मेदारियों से ज्यादा अपने बंद पड़े कार्यालय को लेकर चर्चा में है। शहरवासियों का कहना है कि यह सरकारी दफ्तर अधिकतर समय ताला लटकाए ही नजर आता है। कभी-कभार साहब आते भी हैं तो रजिस्टर में औपचारिक हाज़िरी दर्ज कर, फिर कार्यालय को उसी हाल में छोड़ देते हैं—सूना, बंद और बेसहारा।




हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि नापतोल कार्यालय अब कामकाज का केंद्र कम और असामाजिक तत्वों का अड्डा अधिक बनता जा रहा है। दिनभर यहां मनचलों और नशेड़ियों की मौजूदगी आम हो गई है। सवाल उठता है कि क्या सार्वजनिक कार्यालयों की यही पहचान रह गई है?

जब विभाग गायब, तो बाजार कैसे ईमानदार?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि शाजापुर का बाजार कैसे संचालित हो रहा है, जब नापतोल विभाग खुद ही मैदान से गायब है?
जहां देशभर में केला जैसी वस्तुएं दर्जन के हिसाब से बिकती हैं, वहीं शाजापुर में वही केला वजन के नाम पर बेचा जा रहा है। यह सीधे-सीधे तय मानकों का उल्लंघन है, जिस पर रोक लगाना नापतोल विभाग की जिम्मेदारी है।

लेकिन जब विभाग का कार्यालय ही बंद रहे, तो व्यापारियों की मनमानी पर लगाम कैसे लगे?
दर्जन के नाम पर जनता से किलो की तौल में हक छीना जा रहा है—और इसका खामियाजा आम उपभोक्ता भुगत रहा है।

कागज़ों में निरीक्षण, ज़मीन पर शून्य कार्रवाई









नापतोल विभाग का मूल उद्देश्य बाजार में ईमानदार तौल और सही माप सुनिश्चित करना है, लेकिन शाजापुर में हालात इसके उलट हैं। कागज़ों में होने वाले निरीक्षण और दिखावटी हाज़िरी से न तो व्यवस्था सुधर रही है, न ही उपभोक्ताओं को राहत मिल रही है।

जनता की सीधी मांग

अब जनता का सब्र जवाब देने लगा है। लोगों की मांग साफ है—

  • नापतोल कार्यालय नियमित रूप से खुले

  • बाजार में वजन और तौल की सख्त जांच हो

  • दर्जन और किलो के नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाए

  • उपभोक्ताओं के साथ हो रही ठगी पर तत्काल कार्रवाई हो

जनता की आवाज़ अब सवाल नहीं, चेतावनी बनती जा रही है—

“साहब, कभी तो खोलिए नापतोल का ऑफिस…
ताकि तोल में न्याय मिले और बाजार में ठगी पर रोक लगे।”


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