दिव्यांग दिवस: संवेदना, सम्मान और समान अवसर का संकल्प
हर वर्ष 3 दिसंबर को विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस मनाया जाता है। यह दिन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि समाज के उस वर्ग को सम्मान देने का अवसर है, जो चुनौतियों के बावजूद जीवन को साहस और आत्मविश्वास के साथ जीते हैं। दिव्यांगजन हमारे समाज की ताकत हैं—वे अपनी क्षमता, मेहनत और इच्छाशक्ति से यह साबित करते हैं कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसकी कमी नहीं, बल्कि उसकी क्षमता और हौसले से होती है।
दिव्यांग दिवस क्यों महत्वपूर्ण है?
हमारे समाज में लंबे समय तक दिव्यांगजनों को सहानुभूति की नज़र से देखा गया, जबकि उन्हें सहानुभूति नहीं, समान अधिकार और अवसर चाहिए। दिव्यांग दिवस हमें याद दिलाता है कि एक सशक्त समाज वही है, जो हर व्यक्ति को बराबरी से आगे बढ़ने का मौका देता है।
इस दिन का उद्देश्य है—
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दिव्यांगजनों के अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाना,
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समाज में समान व्यवहार का संदेश देना,
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सरकारी योजनाओं और सुविधाओं की जानकारी पहुँचाना,
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और यह सुनिश्चित करना कि किसी भी व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक या सामाजिक बाधाओं के कारण पीछे न रहना पड़े।
दिव्यांगजन के अधिकार (RPwD Act 2016 के तहत)
भारत में दिव्यांगजनों के अधिकारों को लेकर वर्ष 2016 में एक बड़ा परिवर्तन आया। 'दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016' ने न केवल दिव्यांगता की श्रेणियों को बढ़ाया, बल्कि उनके लिए कई कानूनी अधिकार भी सुनिश्चित किए।
1. समानता और गैर–भेदभाव का अधिकार
किसी भी दिव्यांग व्यक्ति के साथ नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन या किसी भी सार्वजनिक सेवा में भेदभाव नहीं किया जा सकता।
2. शिक्षा का अधिकार
दिव्यांगजन को स्कूल और कॉलेजों में बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के पढ़ाई का अधिकार है। विशेष शिक्षण सामग्री और सहायक सुविधाएँ उनके लिए अनिवार्य हैं।
3. रोजगार का अधिकार
सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण अनिवार्य है। साथ ही निजी संस्थानों को भी दिव्यांग हितैषी माहौल बनाने की जिम्मेदारी दी गई है।
4. सुलभ परिवेश का अधिकार (Accessibility)
सरकारी कार्यालयों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, अस्पताल, स्कूल, बैंक, वेबसाइट—हर जगह सुलभ सुविधाएँ उपलब्ध कराना अनिवार्य है, ताकि दिव्यांगजन बिना बाधा के सभी सेवाएँ प्राप्त कर सकें।
5. सामाजिक सुरक्षा और सहायता
दिव्यांगजनों को पेंशन, सहायक उपकरण, चिकित्सा सहायता, पुनर्वास सेवाएँ और रोजगार प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
दिव्यांगजन के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएँ
भारत सरकार और राज्य सरकारें दिव्यांगजनों के उत्थान के लिए अनेक योजनाएँ संचालित करती हैं। कुछ प्रमुख योजनाएँ इस प्रकार हैं:
1. दिव्यांग पेंशन योजना
दिव्यांगजन को मासिक आर्थिक सहायता दी जाती है। राज्यों के अनुसार राशि अलग-अलग होती है।
2. ADIP योजना (सहायक उपकरण वितरण)
इस योजना के तहत व्हीलचेयर, हियरिंग एड, कृत्रिम अंग, कैलिपर, स्मार्ट स्टिक जैसे उपकरण निःशुल्क या कम कीमत पर प्रदान किए जाते हैं।
3. सुलभ भारत अभियान
यह अभियान दिव्यांगजनों को एक बाधा–मुक्त वातावरण देने के लिए शुरू किया गया है।
इसमें शामिल है—
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सार्वजनिक भवनों को व्हीलचेयर–फ्रेंडली बनाना,
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रैम्प और एलेवेटर लगाना,
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ब्रेल संकेतक तैयार करना,
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सरकारी वेबसाइटों को दिव्यांग–हितैषी बनाना।
4. रोजगार एवं स्वरोजगार योजनाएँ
राष्ट्रीय विकलांग वित्त और विकास निगम (NDFDC) दिव्यांगजनों को कम ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराता है, ताकि वे स्व–रोजगार शुरू कर सकें।
5. शिक्षा से संबंधित योजनाएँ
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छात्रवृत्ति
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मुफ्त पाठ्य सामग्री
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विशेष शिक्षक
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छात्रावास सुविधा
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दिव्यांग–हितैषी पाठ्यक्रम
6. UDID कार्ड (Unique Disability ID)
एक ही कार्ड में सभी प्रमाण—
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दिव्यांगता का प्रमाणपत्र
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सरकारी योजनाओं का लाभ
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पहचान दस्तावेज
UDID कार्ड लागू होने से दिव्यांगजन आसानी से सभी लाभ प्राप्त कर पाते हैं।
समाज की जिम्मेदारी क्या है?
सरकार अपनी नीतियाँ बनाती है, पर असल बदलाव समाज की सोच से आता है। दिव्यांगजन की सबसे बड़ी समस्या उनकी शारीरिक कमजोरी नहीं, बल्कि समाज का दृष्टिकोण है।
हमारा कर्तव्य है—
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उन्हें दया नहीं, अवसर दें
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उनकी क्षमताओं को पहचानें
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उनके लिए सम्मानजनक और सुरक्षित वातावरण बनाएँ
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स्कूलों, दफ्तरों और सार्वजनिक स्थलों को सुलभ बनाएं
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उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करें
दिव्यांगजन भी हमारी तरह सपने देखते हैं, मेहनत करते हैं और जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं। उनकी यात्रा कठिन जरूर होती है, लेकिन हमारा सहयोग उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है।
निष्कर्ष
दिव्यांग दिवस हमें यह याद दिलाता है कि असली विकास तभी संभव है, जब समाज का हर व्यक्ति बराबरी के साथ आगे बढ़ सके। दिव्यांगजन सिर्फ सहायता के पात्र नहीं, बल्कि सम्मान, अवसर और समान अधिकार के हकदार हैं।
एक संवेदनशील समाज वही है, जो अपने हर सदस्य को साथ लेकर चलता है।
इस दिव्यांग दिवस पर हमारा संकल्प यही होना चाहिए—
“किसी भी व्यक्ति की पहचान उसकी शारीरिक सीमाओं से नहीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व, हौसले और क्षमताओं से होती है।”
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