जीवन सिंह शेरपुर का तीसरा दल: मध्यप्रदेश की राजनीति में नया विकल्प या नई बहस?

राजपूत राजनीति MP, नया राजनीतिक विकल्प 



जीवन सिंह शेरपुर का तीसरा दल: सवाल भी, संभावना भी

मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। सामाजिक नेता जीवन सिंह शेरपुर द्वारा तीसरा दल बनाने की बात सामने आते ही लोगों के मन में कई सवाल उठने लगे हैं।
क्या यह पार्टी सफल होगी?
कैसे काम करेगी?
कौन-कौन नेता और वर्ग इसके साथ आएंगे?

इन तमाम सवालों के बीच एक बात निर्विवाद रूप से सामने आती है कि मध्यप्रदेश में जीवन सिंह शेरपुर से अधिक भीड़ एकजुट करने की क्षमता किसी अन्य सामाजिक नेता में फिलहाल नहीं दिखती


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भीड़ क्यों जुटती है? यह संकेत क्या देता है

रतलाम, उज्जैन, भोपाल और हाल ही में हरदा—इन सभी स्थानों पर जीवन सिंह शेरपुर के नेतृत्व में लाखों लोगों का एकत्र होना केवल संयोग नहीं है।
आंदोलनों के तत्काल परिणाम क्या रहे, यह बाद की बात है, लेकिन बार-बार इतनी बड़ी भीड़ जुटना इस बात का संकेत है कि समाज, विशेषकर राजपूत समाज, नेतृत्व और बदलाव चाहता है

राजपूत युवा वर्ग स्पष्ट रूप से एक योग्य, मुखर और निर्णायक नेतृत्व की तलाश में है। इस शून्य को भरने की क्षमता अगर किसी में दिखती है, तो वह जीवन सिंह शेरपुर हैं।

आंदोलन से राजनीति तक का सफर

बार-बार आंदोलनों में ऊर्जा और संसाधन खर्च करने से बेहतर विकल्प यह हो सकता है कि इस ऊर्जा को राजनीतिक विमर्श और संगठित राजनीति में बदला जाए।
देश के कई राज्यों—बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा—में आज दर्जनों क्षेत्रीय पार्टियां हैं। इन सभी की शुरुआत भी ऐसे ही जनसमर्थन और भीड़ से हुई थी।

समय के साथ यही क्षेत्रीय दल बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के लिए मजबूरी और सहयोगी बन जाते हैं। क्षेत्रीय दलों के नेता अक्सर राजनीतिक लाभ की स्थिति में रहते हैं।

कांग्रेस और भाजपा से दूरी, तीसरे विकल्प की जरूरत

वास्तविकता यह भी है कि कांग्रेस जीवन सिंह शेरपुर को टिकट देने की स्थिति में नहीं दिखती, और भाजपा से वैचारिक व राजनीतिक विरोध पहले से मौजूद है।
ऐसे में तीसरा दल बनाना एक स्वाभाविक और रणनीतिक कदम माना जा सकता है।

यदि आंदोलनों में खर्च हुई ऊर्जा और धन को 10–20 विधानसभा सीटों पर केंद्रित रणनीति के साथ लगाया जाए और एक-दो सीटों पर भी सफलता मिलती है, तो इसका सीधा असर भाजपा-कांग्रेस दोनों पर पड़ेगा।
विशेषकर भाजपा को, क्योंकि परंपरागत रूप से राजपूत वोट बैंक उसी का माना जाता है।

क्षेत्रीय राजनीति का उदाहरण: हनुमान बेनिवाल

राजस्थान में हनुमान बेनिवाल की RLP इसका बड़ा उदाहरण है।
कभी भाजपा के साथ गठबंधन, कभी कांग्रेस के साथ—लेकिन राजनीतिक सक्रियता बनी रही और समाज के मुद्दे भी लगातार उठते रहे।
इसी मॉडल पर मध्यप्रदेश में भी जीवन सिंह शेरपुर की पार्टी आगे बढ़ सकती है।

वोट बैंक की हकीकत: आंकड़े बोलते हैं

मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ से लेकर महाकौशल तक राजपूत समाज की बड़ी आबादी है।

  • हरदा विधानसभा में लगभग 25 हजार राजपूत वोट

  • मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सीट पर करीब 35 हजार

  • होशंगाबाद लोकसभा में लगभग 4 लाख राजपूत वोट

  • चंबल क्षेत्र में 8 ऐसी सीटें, जहां 40 से 80 हजार तक राजपूत मतदाता हैं

ये आंकड़े बताते हैं कि यदि कभी “वोट की चोट” का समय आया, तो एक मजबूत विकल्प का होना जरूरी है

संवेदनशील मुद्दों से संतुलन जरूरी

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तीसरे दल को ST-SC कानून और आरक्षण जैसे संवेदनशील विषयों से संतुलित दूरी बनाकर, सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की रणनीति अपनानी होगी।
समावेशी राजनीति ही इस प्रयास को लंबे समय तक टिकाऊ बना सकती है।

निष्कर्ष: विकल्प का स्वागत

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जब लोग बार-बार पूछते हैं—“विकल्प क्या है?”
तो उसका उत्तर होना चाहिए।
इसी दृष्टि से देखा जाए, तो जीवन सिंह शेरपुर के तीसरे राजनीतिक विकल्प का सम्मानपूर्वक स्वागत किया जाना चाहिए

यह प्रयास केवल एक व्यक्ति या समाज का नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश की राजनीति में नए विमर्श और संतुलन की संभावना भी है।

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