राज्य निर्वाचन आयोग का नवाचार: महापौर-पार्षद प्रत्याशियों की ऑनलाइन सुनवाई |
राज्य निर्वाचन आयोग का नवाचार: अब महापौर-पार्षद प्रत्याशियों की सुनवाई ऑनलाइन
भोपाल | 19 दिसंबर 2025
मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग ने नगरीय निकाय चुनाव प्रक्रिया को अधिक सरल, पारदर्शी और अभ्यर्थी-हितैषी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष एवं पार्षद पद का चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थियों के निर्वाचन व्यय लेखा से जुड़े मामलों में अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ऑनलाइन सुनवाई की जा रही है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री मनोज श्रीवास्तव की इस पहल से अभ्यर्थियों को अब सुनवाई के लिए भोपाल स्थित राज्य निर्वाचन आयोग कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं रही।
हर गुरुवार होती है ऑनलाइन सुनवाई
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा यह ऑनलाइन सुनवाई प्रत्येक गुरुवार को आयोजित की जाती है। इस नवाचार से—
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अभ्यर्थियों का समय बच रहा है
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यात्रा व्यय में कमी आई है
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मामलों का त्वरित निराकरण संभव हो सका है
पहले इन सभी मामलों की सुनवाई आयोग के मुख्यालय भोपाल में ही होती थी।
अब तक 411 अभ्यर्थियों की हो चुकी है सुनवाई
फरवरी 2025 से अब तक 411 अभ्यर्थियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की जा चुकी है।
इनमें भोपाल, खंडवा, छिंदवाड़ा, मंदसौर, धार, सतना, उमरिया, ग्वालियर, अलीराजपुर, राजगढ़, नीमच, शाजापुर, डिंडौरी, सागर एवं हरदा जिलों के अभ्यर्थी शामिल हैं।
97 के लेखे मान्य, 226 अभ्यर्थी निरर्हित
सुनवाई एवं प्रस्तुत दस्तावेजों के परीक्षण के बाद—
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97 अभ्यर्थियों के निर्वाचन व्यय लेखा मान्य किए गए
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226 अभ्यर्थियों को नियमों के उल्लंघन पर निरर्हता घोषित किया गया
नियमों के अनुसार अभ्यर्थी को अधिकतम 5 वर्षों तक निरर्हित किए जाने का प्रावधान है।
जिला मुख्यालय से जुड़ सकते हैं अभ्यर्थी
अभ्यर्थी हर गुरुवार शाम 4:30 बजे से 6:00 बजे तक
अपने जिले के एनआईसी (NIC) कक्ष से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए राज्य निर्वाचन आयुक्त के समक्ष अपना पक्ष रख सकते हैं।
प्रकरणों के त्वरित निपटारे के लिए जिले के उप जिला निर्वाचन अधिकारी (स्थानीय निर्वाचन) को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है।
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कानूनी प्रावधान और प्राकृतिक न्याय
मध्यप्रदेश नगर निगम एवं नगर पालिका अधिनियम के तहत निर्वाचन व्यय लेखा प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
लेखा प्रस्तुत न करने या निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करने पर अभ्यर्थी को निरर्हित किया जा सकता है।
हालांकि, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अंतर्गत ऐसे अभ्यर्थियों को भी अवसर दिया जाता है—
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जिन्होंने विलंब से लेखा दाखिल किया हो
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या जिन्होंने नियमानुसार लेखा प्रस्तुत नहीं किया हो
ऐसे मामलों में अभ्यर्थी राज्य निर्वाचन आयुक्त के समक्ष अपना पक्ष रख सकते हैं।
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